BA Semester-1 Philosophy - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - बीए सेमेस्टर-1 दर्शनशास्त्र - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 दर्शनशास्त्र

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :250
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2633
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-1 दर्शनशास्त्र

प्रश्न- "ब्रह्म सत्य जगत मिथ्या" शंकर के इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं? शंकर के ब्रह्म और जगत सम्बन्धी विचारों के सन्दर्भ में विवेचना कीजिए।

अथवा
शंकर के ब्रह्म विचार की व्याख्या कीजिए।

उत्तर-

अद्वैत वेदान्त दर्शन के प्रमुख प्रवर्तक शंकर (शंकराचार्य) ने जगत की व्याख्या अत्यन्त ही तुच्छ शब्दों में की है। शंकर ने केवल ब्रह्म को एकमात्र सत्य माना है तथा सभी वस्तुओं (ईश्वर, जीव, जगत आदि) को प्रपंच कहा है। ब्रह्म ही एकमात्र सत्ता है तथा जगत मिथ्या है एवं जीव ब्रह्म अभिन्न है। शंकर के दर्शन की व्याख्या बड़े ही सुन्दर शब्दों में की गयी है -

"बह्म सत्यं जगत मिथ्या जीवों ब्रह्मैव नापरः। शंकर ने जगत को रज्जु में दिखलाई पड़ने वाले सर्प के सदृश माना है। रज्जु में प्रतीत होने वाले सर्प का आधार रज्जु है, उसी भाँति जगत का आधार ब्रह्म है तथा यह ब्रह्म विश्व का अधिष्ठान है। जिस प्रकार सर्प रज्जु के यथार्थ स्वरूप पर आवरण डाल देता है, उसी प्रकार जगत् ब्रह्म के यथार्थ स्वरूप पर आवरण डाल देता है तथा उसके रूप का विक्षेप जगत वास्तविक प्रतीत होने लगता है। शंकर के मत से सम्पूर्ण जगत ब्रह्म का विवर्त मात्र है।

ऐसा प्रतीत होता है कि जगत् ब्रह्म का रूपान्तरित रूप है लेकिन यह प्रतीति मात्र है, क्योंकि ब्रह्म सत्य है एवं जगत् मिथ्या है। अतएव, सत्य ब्रह्म का रूपान्तर असत्य वस्तु में किस प्रकार हो सकता है। पुनः ब्रह्म एक है, परन्तु जगत् नानारूपात्मक है, तो एक का रूपान्तर अनेक में कैसे सम्भव है? आगे शंकर ने कहा है कि ब्रह्म अपरिवर्तनशील है परन्तु जगत् परिवर्तनशील है। अपरिवर्तनशील ब्रह्म का रूपान्तर परिवर्तनशील जगत् में किस प्रकार हो सकता है? इसलिए शंकर विवर्तवाद के समर्थक हो जाते हैं। इस समस्या के समाधान के लिए शंकर ने जगत् की तुलना स्वप्न या भ्रम से की है। इसे स्वीकार करने पर सृष्टि की व्याख्या सुगमतापूर्वक हो जाती है। शंकर ने कहा है कि जैसे कोई जादूगर कुशलतापूर्वक एक सिक्के को अनेक सिक्कों में रूपान्तरित कर देता है, इसी प्रकार ब्रह्म माया की शक्ति के द्वारा जगत् का प्रदर्शन करता है। ऐसा करने में न तो जादूगर अपने ढोंग से प्रभावित होता है, न ही ब्रह्म अपनी माया से प्रभावित होता है।

शंकर ने सत्ता को तीन श्रेणियों में स्वीकार किया है -

प्रतिभाषिक सत्ता इस सत्ता के अन्तर्गत ऐसे विषय शामिल है जो स्वप्न एवं विभ्रम में उपस्थित होते हैं। इसका अस्तित्व क्षणिक होता है तथा जाग्रत अवस्था के अनुभवों के द्वारा इसका खण्डन हो जाता है।

व्यावहारिक सत्ता इस सत्ता के अन्तर्गत वैसी वस्तुयें आती हैं जो जाग्रतावस्था में सत्य प्रतीत होती हैं। इस प्रकार की वस्तुयें पूर्णतः सत्य नहीं होती हैं, क्योंकि तार्किक दृष्टि से इनका खण्डन सम्भव है।

पारमार्थिक सत्ता यह सत्ता न तो बाधित होती है और न ही इसके बाधित होने की कल्पना की जा सकती है। शंकर ने जगत् को व्यावहारिक सत्ता की श्रेणी में रखा है। व्यावहारिक दृष्टिकोण से जगत् पूर्णतया सत्य प्रतिभाषिक सत्ता की अपेक्षा अधिक सत्य है, परन्तु पारमार्थिक सत्ता की अपेक्षा अत्यल्प सत्य है। शंकर ने जगत् को न तो पूर्णतया उपस्ति माना है और न ही स्वप्न एवं विभ्रम की भाँति मिथ्या ही स्वीकार किया है। पारमार्थिक दृष्टिकोण से जगत् की विवेचना करने पर वह असत्य प्रतीत होता है। जगत् को पारमार्थिक दृष्टिकोण से असत्य प्रमाणित करने के लिए शंकर ने अधोलिखित तर्कों का सहारा लिया है -

(i) जो पदार्थ सदा विद्यमान रहता है उसे सत्य स्वीकार किया जाता है, लेकिन जो पदार्थ सदा विद्यमान नहीं होता वह असत्य है। चूंकि जगत् उत्पत्ति एवं विनाश का विषय है अतएव, यह सिद्ध होता है कि जगत् सदा विद्यमान नहीं रहता है। इसलिए यह मिथ्या है।

(ii) अपरिवर्तनशील पदार्थ सत्य है, लेकिन परिवर्तनशील पदार्थ असत्य है। ब्रह्म अपरिवर्तनशील होने के कारण सत्य है, लेकिन जगत् परिवर्तनशील होने के कारण असत्य है।

(iii) जो देश और काल से परे तथा स्वतंत्र होता है, वह सत्य है, लेकिन जो देश-काल में व्याप्त होने के कारण कार्य नियम के अधीन होता है वह असत्य है। ब्रह्म देश एवं काल से परे स्वतंत्र होने के कारण सत्य है, परन्तु जगत् तथा काल एवं देश में व्याप्त रहने के फलस्वरूप तथा कारण कार्य नियम के अधीन होने के कारण असत्य है।

(iv) जो पदार्थ दृश्य हैं, वे असत्य हैं। जगत् के पदार्थ भी दृश्य होने के कारण असत्य हैं।

(v) जगत् ब्रह्म का विवर्त है। ब्रह्म जगत् रूपी प्रपंच का अधिष्ठान है। जो विवर्त है उसे पारमार्थिक रूप से सत्य नहीं कह सकते हैं। अतएव जगत् असत्य है।

शंकर ने कहा है जगत् का आधार ब्रह्म है तथा जिसका आधार यथार्थ हो उसे असत्य किस प्रकार कहा जा सकता है। वह जगत् भी वस्तुतः ब्रह्म ही है, क्योंकि सम्पूर्ण जगत् ब्रह्म पर आश्रित है। अतएव, यह दृश्य जगत् ब्रह्म की प्रतीति रूप है तथा यह सत्य है।

बौद्ध दर्शन का शून्यवाद सम्प्रदाय स्वीकार करता है कि जो शून्य है वही जगत् के रूप मेंदर्शनशास्त्र / 131 दृष्टिगोचर होता है, लेकिन शंकर ने कहा है कि सत्य ब्रह्म ही हमें जगत् के रूप में दृष्टिगोचर होता है। शून्यवादियों के मत में जगत का आधार असत् है, जबकि शंकर ब्रह्म में जगत् का आधार सत् है।

पुनः विज्ञानवादियों ने कहा है कि जगत् मानसिक प्रत्यय की अभिव्यक्ति है, जबकि शंकर के अनुसार, जगत् का आधार केवल विज्ञान ही नहीं है। शंकर ने जगत को वस्तुनिष्ठ एवं विज्ञानवादियों ने आत्मनिष्ठ स्वीकार किया है।

शंकर एवं पाश्चात्य दार्शनिक एफ. एच. ब्रैडले दोनों ने जगत् को ब्रह्म का विवर्त माना है। चूंकि शंकर ने बौद्ध दर्शन की भाँति जगत् को अनित्य एवं असत्य माना है, इसी कारण कतिपय विद्वान शंकर को प्रच्छन्न बौद्ध कहते हैं।

कुछ दार्शनिकों ने यह कहा है कि शंकर ने जगत् को पूर्णतया असत्य माना है क्योंकि जगत् की तुलना स्वप्न, भ्रम, पानी का बुलबुला रज्जु सर्प विपर्यय, जादू का खेल, फेन इत्यादि प्रतीकात्मक शब्दों की सहायता से की है। इन शब्दों को साधारण अर्थ में ग्रहण करने पर यह जगत् सचमुच असत्य प्रमाणित होता है। जबकि शंकर ने इन शब्दों का प्रयोग यह दर्शाने के लिये किया है, कि जगत् पूर्णतया सत्य नहीं है। इसलिए इन उपमा शब्दों को यथार्थ अर्थ में नहीं ग्रहण करना चाहिए, ताकि कठिनाई न हो।

शंकर के अनुसार जैसे स्वप्न की अनुभूतियाँ सही प्रतीत होती हैं, वैसे ही अज्ञान के कारण जगत् हमें यथार्थ प्रतीत होता है। जैसे जाग्रत अवस्था के द्वारा स्वप्न की अनुभूतियों का खण्डन हो जाता है वैसे ही मोक्ष के पश्चात् जगत् की अनुभूतियों का खण्डन स्वयंमेव हो जाता है। शंकर ने स्वप्न एवं जगत् में अन्तर भी बतलाया है। स्वप्न क्षणिक होता है। परन्तु स्वप्न की अपेक्षा जगत अधिक नित्य प्रतीत होता है।

स्वप्न परिवर्तनशील है जबकि जगत इसकी अपेक्षा अपरिवर्तनशील है। स्वप्न आत्मनिष्ठ है, जबकि जगत् नहीं है। शंकर ने यह भी कहा है कि उपमा पदार्थ के सादृश्य है, अपितु स्वप्नवत् नहीं है। शंकर ने यह भी कहा है कि उपमा पदार्थ के सादृश्य का ज्ञान कराती है न कि उसकी यथार्थता का।

शंकर का जगत् विचार असत्य नहीं है। असत्य वह है जो असत् है। जैसे आकाश - कुसुम, बंध्यापुत्र आदि। परन्तु जगत् का अस्तित्व है, दृश्य है। यहाँ पर यह विचारणीय प्रश्न है कि जगत् सत्य है? सत्य उसे कहते हैं जो त्रिकाल में विद्यमान रहता है। सत्य का विरोध न तो अनुभूति से और न तर्क से सम्भव है। इस दृष्टि से ब्रह्म सत्य है क्योंकि यह त्रिकाल अबाधित सत्ता है। जगत् विरोधों से भरापूरा है तथा इसका व्याघात तार्किक दृष्टिकोण से सम्भव है। जगत् को सत्य एवं असत्य नहीं कहा जा सकता क्योकि ऐसा कहना या मानना विरोधात्मक होगा। इसी कारण शंकर ने जगत् को अनिवर्चनीय कहा है। अनिवर्चनीय किसी वस्तु को असत्य नहीं ठहराती है। शंकर ने भी जगत् को असत्य नहीं माना है।

चूँकि शंकर कर्मवाद में भी विश्वास करते हैं, अतः इसके लिए भी जगत् को स्वीकार करना आवश्यक है। क्योंकि व्यक्ति जगत् में रहकर ही कर्म करता है। शंकर का जगत् असत्य नहीं हो सकता है, क्योंकि इसका अधिष्ठान ब्रह्म है। चूँकि जगत् ब्रह्माश्रित है, इसलिए वह यथार्थतः ब्रह्म ही है। -

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- भारतीय दर्शन का अर्थ बताइये व भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषतायें बताइये।
  2. प्रश्न- भारतीय दर्शन का अर्थ बताइये व भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषतायें बताइये।
  3. प्रश्न- भारतीय दर्शन की आध्यात्मिक पृष्ठभूमि क्या है तथा भारत के कुछ प्रमुख दार्शनिक सम्प्रदाय कौन-कौन से हैं? भारतीय दर्शन का अर्थ एवं सामान्य विशेषतायें बताइये।
  4. प्रश्न- भारतीय दर्शन की आध्यात्मिक पृष्ठभूमि क्या है तथा भारत के कुछ प्रमुख दार्शनिक सम्प्रदाय कौन-कौन से हैं? भारतीय दर्शन का अर्थ एवं सामान्य विशेषतायें बताइये।
  5. प्रश्न- क्या भारतीय दर्शन जीवन जगत के प्रति निराशावादी दृष्टिकोण अपनाता है? विवेचना कीजिए।
  6. प्रश्न- क्या भारतीय दर्शन जीवन जगत के प्रति निराशावादी दृष्टिकोण अपनाता है? विवेचना कीजिए।
  7. प्रश्न- भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषताओं की व्याख्या कीजिये।
  8. प्रश्न- भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषताओं की व्याख्या कीजिये।
  9. प्रश्न- दर्शन के सम्बन्ध में भारतीय तथा पाश्चात्य दृष्टिकोणों की व्याख्या कीजिए।
  10. प्रश्न- दर्शन के सम्बन्ध में भारतीय तथा पाश्चात्य दृष्टिकोणों की व्याख्या कीजिए।
  11. प्रश्न- भारतीय वेद के सामान्य सिद्धान्त बताइए।
  12. प्रश्न- भारतीय वेद के सामान्य सिद्धान्त बताइए।
  13. प्रश्न- भारतीय दर्शन के नास्तिक स्कूलों का परिचय दीजिए।
  14. प्रश्न- भारतीय दर्शन के नास्तिक स्कूलों का परिचय दीजिए।
  15. प्रश्न- आस्तिक दर्शन के प्रमुख स्कूलों का परिचय दीजिए।
  16. प्रश्न- आस्तिक दर्शन के प्रमुख स्कूलों का परिचय दीजिए।
  17. प्रश्न- भारतीय दर्शन के आस्तिक तथा नास्तिक सम्प्रदायों की व्याख्या कीजिये।
  18. प्रश्न- भारतीय दर्शन के आस्तिक तथा नास्तिक सम्प्रदायों की व्याख्या कीजिये।
  19. प्रश्न- चार्वाक दर्शन किसे कहते हैं? चार्वाक दर्शन में प्रमाण पर विचार दीजिए।
  20. प्रश्न- चार्वाक दर्शन किसे कहते हैं? चार्वाक दर्शन में प्रमाण पर विचार दीजिए।
  21. प्रश्न- चार्वाक दर्शन में तत्व सम्बन्धी बातों पर निबन्ध लिखिये।
  22. प्रश्न- चार्वाक दर्शन में तत्व सम्बन्धी बातों पर निबन्ध लिखिये।
  23. प्रश्न- चार्वाक दर्शन के ईश्वर सम्बन्धी विचार दीजिए।
  24. प्रश्न- चार्वाक दर्शन के ईश्वर सम्बन्धी विचार दीजिए।
  25. प्रश्न- चार्वाक दर्शन में प्रमाण विचारों का अर्थ बताइए तथा साधनों का वर्णन कीजिए।
  26. प्रश्न- चार्वाक दर्शन में प्रमाण विचारों का अर्थ बताइए तथा साधनों का वर्णन कीजिए।
  27. प्रश्न- चार्वाक दर्शन का संक्षिप्त मूल्यांकन कीजिये।
  28. प्रश्न- चार्वाक दर्शन का संक्षिप्त मूल्यांकन कीजिये।
  29. प्रश्न- चार्वाक के भौतिक स्वरूप की व्याख्या कीजिए।
  30. प्रश्न- चार्वाक के भौतिक स्वरूप की व्याख्या कीजिए।
  31. प्रश्न- चार्वाक की तत्व मीमांसा का स्वरूप क्या है?
  32. प्रश्न- चार्वाक की तत्व मीमांसा का स्वरूप क्या है?
  33. प्रश्न- चार्वाक दर्शन का आलोचनात्मक विवरण दीजिए।
  34. प्रश्न- चार्वाक दर्शन का आलोचनात्मक विवरण दीजिए।
  35. प्रश्न- ईश्वर के अस्तित्व के लिए प्रमाणों की व्याख्या कीजिए।
  36. प्रश्न- चार्वाक दर्शन के प्रत्यक्ष प्रमाण की विवेचना कीजिए।
  37. प्रश्न- चार्वाक दर्शन के आत्मा सम्बन्धी विचार दीजिए।
  38. प्रश्न- सुख प्राप्ति ही जीवन का अन्तिम उद्देश्य है। बताइये।
  39. प्रश्न- चार्वाक के ज्ञान सिद्धांत की समीक्षात्मक व्याख्या कीजिए।
  40. प्रश्न- "चार्वाक की तत्वमीमांसा उसकी ज्ञान मीमांसा पर आधारित है।" विवेचना कीजिए।
  41. प्रश्न- जैन महावीर के जीवन वृत्त तथा शिक्षाओं का वर्णन कीजिए।
  42. प्रश्न- भारतीय संस्कृति में जैन धर्म के योगदान का वर्णन कीजिए।
  43. प्रश्न- जैन दर्शन में स्याद्वाद किसे कहते हैं?
  44. प्रश्न- जैन दर्शन के सात वाक्य भंगीनय लिखिए।
  45. प्रश्न- सात वाक्यों का आलोचनात्मक दृष्टिकोण से वर्णन कीजिए।
  46. प्रश्न- जैनों के बन्धन तथा मोक्ष सम्बन्धी सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
  47. प्रश्न- जैन दर्शन के अनुसार द्रव्य का परिचय दीजिये।
  48. प्रश्न- द्रव्य के प्रकार बताइये।
  49. प्रश्न- द्रव्य को आकृति द्वारा स्पष्ट कीजिए।
  50. प्रश्न- जीव अथवा आत्मा किसे कहते हैं?
  51. प्रश्न- अजीव द्रव्य क्या है? व्याख्या कीजिए।
  52. प्रश्न- जैन दर्शन में जीव का स्वरूप क्या है?
  53. प्रश्न- जैन दर्शन के द्रव्य सिद्धान्त की समीक्षात्मक व्याख्या कीजिए।
  54. प्रश्न- जैन धर्म पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  55. प्रश्न- जैन धर्म के पतन के कारण स्पष्ट कीजिए।
  56. प्रश्न- जैन धर्म व बौद्ध धर्म में समानताओं और असमानताओं का तुलनात्मक परीक्षण कीजिए।
  57. प्रश्न- जैन धर्म की शिक्षाएँ क्या थीं?
  58. प्रश्न- पुद्गल किसे कहते हैं?
  59. प्रश्न- जैन नीतिशास्त्र और धर्म पर टिप्पणी लिखिए।
  60. प्रश्न- जैन धर्म के पाँच महाव्रत बताइए।
  61. प्रश्न- जैन धर्म के प्रमुख सम्प्रदाय बताइए।
  62. प्रश्न- जैन दर्शन का सामान्य स्वरूप बताइए।
  63. प्रश्न- सांख्य की 'प्रकृति' तथा वेदान्त की 'माया' के बीच सम्बन्ध की व्याख्या कीजिये।
  64. प्रश्न- गौतम बुद्ध के जीवन एवं उपदेशों का वर्णन कीजिए।
  65. प्रश्न- बौद्ध धर्म के उत्थान व पतन के क्या कारण थे? समझाइये।
  66. प्रश्न- भारतीय संस्कृति में बौद्ध धर्म का योगदान बताइये।
  67. प्रश्न- बौद्ध दर्शन से क्या आशय है?
  68. प्रश्न- बौद्ध धर्म के चार आर्य सत्यों की विवेचना कीजिए।
  69. प्रश्न- बुद्ध ने कौन से दुःख के कारणों के चक्र बताए? बौद्ध दर्शन के तृतीय आर्य सत्य की विवेचना कीजिये।
  70. प्रश्न- बौद्ध धर्म पर लेख प्रस्तुत कीजिए।
  71. प्रश्न- बौद्ध दर्शन के चार सम्प्रदाय लिखिए।
  72. प्रश्न- क्षणिकवाद का सिद्धान्त क्या है?
  73. प्रश्न- बौद्ध धर्म के महत्त्वपूर्ण तथ्यों पर प्रकाश डालिए।
  74. प्रश्न- बौद्ध दर्शन के अनुसार निर्वाण प्राप्ति के अष्टांगिक मार्ग की व्याख्या कीजिए।
  75. प्रश्न- बौद्ध दर्शन में निर्वाण की व्याख्या कीजिये।
  76. प्रश्न- बौद्ध संगीतियों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  77. प्रश्न- महाजनपदों के नाम लिखिए।
  78. प्रश्न- बौद्ध धर्म के प्रमुख सिद्धान्त क्या हैं?
  79. प्रश्न- भारतीय संस्कृति को बौद्ध धर्म की क्या देन थी?
  80. प्रश्न- क्या बौद्ध दर्शन निराशावादी है?
  81. प्रश्न- सांख्य दर्शन के अनुसार प्रकृति की विशेषताएँ लिखिए।
  82. प्रश्न- सांख्य दर्शन के अनुसार प्रकृति के गुणों की व्याख्या कीजिए।
  83. प्रश्न- सत्, रज और तम गुण किसे कहते हैं?
  84. प्रश्न- प्रकृति के गुणों के क्या परिणाम होते हैं?
  85. प्रश्न- सांख्य दर्शन के अनुसार सत्कार्यवाद की व्याख्या कीजिए।
  86. प्रश्न- सांख्य दर्शन के तत्व सम्बन्धी विचार लिखिए।
  87. प्रश्न- प्रकृति तथा पुरुष का अर्थ तथा सम्बन्ध बताइए।
  88. प्रश्न- ज्ञानेन्द्रियों की व्याख्या कीजिए।
  89. प्रश्न- पुरुष के स्वरूप की व्याख्या कीजिए। पुरुष के अस्तित्व के लिए सांख्य द्वारा दिये गये तर्कों की विवेचना कीजिए।
  90. प्रश्न- सांख्य दर्शन की समीक्षा कीजिए।
  91. प्रश्न- सांख्य ज्ञानमीमांसा की विवेचना कीजिए।
  92. प्रश्न- सांख्य दर्शन के पुरुष की अनेकता की विवेचना कीजिए।
  93. प्रश्न- योग दर्शन से क्या तात्पर्य है? समझाइये।
  94. प्रश्न- पंतजलि ने योग सूत्रों को कितने भागों में बाँटा?
  95. प्रश्न- योग दर्शन की व्याख्या कीजिए।
  96. प्रश्न- योग दर्शन के अभ्यास के अंग कौन-कौन से हैं?
  97. प्रश्न- योग दर्शन में तीन मार्ग कौन से हैं?
  98. प्रश्न- योग के अष्टांग साधन बताइए।
  99. प्रश्न- योगांग किसे कहते हैं?
  100. प्रश्न- योग दर्शन के पाँच नियमों की व्याख्या कीजिए।
  101. प्रश्न- योग' से आप क्या समझते हैं? योग साधना के विभिन्न सोपानों का संक्षिप्त विवेचन कीजिए।
  102. प्रश्न- योग दर्शन में ईश्वर के स्वरूप की विवेचना कीजिए।
  103. प्रश्न- योग दर्शन में ईश्वर के स्वरूप की विवेचना कीजिए तथा उसके अस्तित्व को सिद्ध करने सम्बन्धी प्रमाणों की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  104. प्रश्न- वैराग्य क्या है? इसकी भेदों सहित व्याख्या कीजिए।
  105. प्रश्न- न्याय दर्शन से ईश्वर किन रूपों में कार्य करता है।
  106. प्रश्न- न्याय दर्शन में ईश्वर के अस्तित्व के प्रमाण लिखिए।
  107. प्रश्न- न्याय दर्शन की भूमिका प्रस्तुत कीजिए तथा न्यायशास्त्र का महत्त्व बताइये? तथा न्यायशास्त्र का प्रमाण शास्त्र का वर्णन कीजिए।
  108. प्रश्न- प्रमाण शास्त्र की व्याख्या कीजिए।
  109. प्रश्न- भारतीय तर्कशास्त्र में हेत्वाभास के प्रकार बताइए।
  110. प्रश्न- न्याय दर्शन के अनुसार अनुमान' के स्वरूप और प्रकारो की व्याख्या कीजिये।
  111. प्रश्न- न्याय दर्शन के अनुसार सोलह पदार्थों की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
  112. प्रश्न- प्रमा को परिभाषित करते हुए प्रमा के स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  113. प्रश्न- प्रमा की परिभाषा दीजिए तथा उसके सामान्य लक्षणों पर प्रकाश डालिए।
  114. प्रश्न- प्रमाण की परिभाषा देते हुए प्रमाण के प्रमुख प्रकारों का विवेचन कीजिए।
  115. प्रश्न- न्याय के आलोक में पदार्थ के विभिन्न प्रकारों का विवेचन कीजिए।
  116. प्रश्न- शब्द-प्रमाण में शब्द को स्वतन्त्र प्रमाण माना गया है विवेचन कीजिए।
  117. प्रश्न- उपमान प्रमाण के स्वरूप का विवेचन करते हुए इसकी परिभाषा दीजिए।
  118. प्रश्न- 'न्याय दर्शन' में 'अनुमान प्रमाण के स्वरूप की व्याख्या कीजिए एवं अनुमान प्रमाण के प्रकारान्तर भेदों का उल्लेख कीजिए।
  119. प्रश्न- अनुमान क्या है? परमार्थानुमान व स्मार्थानुमान को स्पष्ट कीजिए।
  120. प्रश्न- प्रत्यक्ष प्रमाण का स्वरूप क्या है?
  121. प्रश्न- न्यायदर्शन में निर्विकल्प प्रत्यक्ष का स्वरूप समझाइये।
  122. प्रश्न- न्यायदर्शन में उपमान प्रमाण का क्या स्वरूप है? न्याय दर्शन में उपमान प्रमाण का स्वरूप
  123. प्रश्न- चार्वाक दर्शन में अनुमान प्रमाण का खंडन किस प्रकार करता है?
  124. प्रश्न- अनुमान प्रमाण में व्याप्ति की भूमिका समझाइये।
  125. प्रश्न- प्रमा और अप्रमा के भेद को स्पष्ट कीजिए।
  126. प्रश्न- न्याय दर्शन में कितने प्रमाण स्वीकार किए गए हैं? सभी का वर्णन कीजिए।
  127. प्रश्न- समानतन्त्र के रूप में न्याय वैशेषिक की व्याख्या कीजिए।
  128. प्रश्न- वैशेषिक दर्शन के पदार्थों के नाम लिखिये।
  129. प्रश्न- वैशेषिक द्रव्यों की व्याख्या कीजिए।
  130. प्रश्न- वैशेषिक दर्शन में कितने गुण होते हैं?
  131. प्रश्न- कर्म किसे कहते हैं? व्याख्या कीजिए।
  132. प्रश्न- सामान्य की व्याख्या कीजिए।
  133. प्रश्न- विशेष किसे कहते हैं? लिखिए।
  134. प्रश्न- समवाय किसे कहते हैं?
  135. प्रश्न- वैशेषिक दर्शन में अभाव क्या है?
  136. प्रश्न- वैशेषिक दर्शन क्या है? न्याय दर्शन और वैशेषिक दर्शन में आपस में क्या सम्बन्ध है? वैशेषिक दर्शन में सात प्रकार के पदार्थ बताइए।
  137. प्रश्न- व्याप्ति क्या है? व्याप्ति की स्थापना किस प्रकार होती है?
  138. प्रश्न- 'गुण' और 'कर्म' पदार्थों की विवेचना कीजिए।
  139. प्रश्न- वैशेषिक दर्शन की समीक्षा कीजिए।
  140. प्रश्न- न्याय-वैशेषिक दर्शन के स्वरूप पर प्रकाश डालिए?
  141. प्रश्न- न्याय-वैशेषिक दर्शन में अनुमान का क्या स्वरूप है?
  142. प्रश्न- समानतन्त्र के रूप में न्याय वैशेषिक की व्याख्या कीजिए।
  143. प्रश्न- संयोग और समवाय पर टिप्पणी लिखिए।
  144. प्रश्न- मीमांसा से क्या तात्पर्य है इसे भली-भाँति समझाइये।
  145. प्रश्न- पूर्व मीमांसा किसे कहते हैं?
  146. प्रश्न- द्रव्यों की व्याख्या कीजिए।
  147. प्रश्न- मीमांसा दर्शन में ज्ञान के कितने साधन माने गये हैं?
  148. प्रश्न- उपमान किसे कहते हैं?
  149. प्रश्न- अर्थापत्ति किसे कहते हैं?
  150. प्रश्न- अनुपलब्धि या अभाव किसे कहते हैं?
  151. प्रश्न- मीमांसा के तत्व विचार की व्याख्या कीजिए।
  152. प्रश्न- मीमांसकों ने 'आत्मा' का क्या स्वरूप बतलाया है?
  153. प्रश्न- शंकराचार्य ने ब्रह्म के कितने स्वरूपों की व्याख्या की है?
  154. प्रश्न- ब्रह्म और माया क्या है?
  155. प्रश्न- ब्रह्म और जीव क्या हैं?
  156. प्रश्न- माया में कितनी शक्तियों का समावेश है?
  157. प्रश्न- "ब्रह्म सत्य जगत मिथ्या" शंकर के इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं? शंकर के ब्रह्म और जगत सम्बन्धी विचारों के सन्दर्भ में विवेचना कीजिए।
  158. प्रश्न- अद्वैत दर्शन में जीव के बंधन और मोक्ष पर एक निबन्ध लिखिए।
  159. प्रश्न- प्रभाकर मत में अख्यातिवाद क्या है? और यह किस प्रकार भट्ट मत के विपरीत ख्यातिवाद से भिन्न है? स्पष्ट कीजिए।
  160. प्रश्न- शंकर का अद्वैत वेदान्त क्या है?
  161. प्रश्न- अद्वैत वेदान्त में निर्गुण ब्रह्म और सगुण ब्रह्म में क्या भेद बताया गया है? विवेचना कीजिए।
  162. प्रश्न- शंकर के 'ईश्वर' विचार की व्याख्या कीजिये।
  163. प्रश्न- जीव किसे कहते हैं?
  164. प्रश्न- शंकर के अद्वैतवाद तथा रामानुज के विशिष्ट द्वैतवाद में अन्तर बताइए।
  165. प्रश्न- वेदान्त दर्शन किसे कहते हैं? शंकर के वेदान्त दर्शन की व्याख्या कीजिए।
  166. प्रश्न- क्या विश्व शंकर के अनुसार वास्तविक है? विवेचना कीजिए।
  167. प्रश्न- रामानुज शंकर के मायावाद का किस प्रकार खण्डन करते हैं?
  168. प्रश्न- शंकर की ज्ञान मीमांसा का वर्णन कीजिए।
  169. प्रश्न- शंकर के ईश्वर विचार की व्याख्या कीजिए।
  170. प्रश्न- माया क्या है? माया सिद्धान्त की रामानुज द्वारा दी गई आलोचना का विवरण दीजिए।
  171. प्रश्न- रामानुज के विशिष्टाद्वैत वेदान्त से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए।
  172. प्रश्न- रामानुज के अनुसार ब्रह्म क्या है? ईश्वर व ब्रह्म में भेद बताइए।
  173. प्रश्न- रामानुज के अनुसार मोक्ष व उनके साधनों का वर्णन कीजिए।
  174. प्रश्न- जीवात्मा के भेदों को स्पष्ट कीजिए।
  175. प्रश्न- रामानुज के अनुसार ज्ञान के साधन क्या हैं?
  176. प्रश्न- रामानुज के 'जीव सम्बन्धी विचार की व्याख्या कीजिये।
  177. प्रश्न- रामानुज के जगत की व्याख्या कीजिए।
  178. प्रश्न- विशिष्ट द्वैत दर्शन की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  179. प्रश्न- चित् व अचित् तत्व क्या हैं?
  180. प्रश्न- बन्धन और मोक्ष क्या है?
  181. प्रश्न- चित्त क्या है?

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